क्या कभी हमने सोचा है कि हमारे छोटे छोटे कदम हमारे लक्ष्य को पूरा करने में कितनी बड़ी भूमिका निभाते हैं?
जादव पायेंग- भारत के एक वनवासी
जादव पायेंग की यह आत्मकथा वास्तव में दिलचस्प और प्रेरक है जो हमें बताती है कि जीवन मे कुछ भी असंभव नहीं है।
जादव पायेंग एक 60 वर्षीय किसान हैं। उनका पाँच लोगों का परिवार है और वे उत्तर पूर्वी भारत में एक मामूली घर में रहते हैं। लेकिन आप को यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि उन्होंने अकेले ही कुछ ऐसा किया, जो हम सब के लिए तो प्रेरणादायक है ही, लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ी भी उनसे बहुत कुछ सीख सकती है।
एक पत्रकार के साथ साक्षात्कार के दौरान उन्होंने अपने जीवन की पूरी कहानी साझा की। उन्होंने पत्रकार को बताया कि, “जहाँ वे उस पत्रकार के साथ बैठे हुए हैं, वह जगह मोहगोर खूटी (भैंस शेड) कहलाती है। यह जगह ऐतिहासिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण है। 1826 में अंग्रेजों और बर्मा के बीच महान युद्ध (जिसे प्रथम बर्मा युद्ध भी कहा जाता है) यहीं लड़ा गया था। 1965 और 1970 के बीच ब्रहमपुत्र नदी में भयंकर बाढ़ आई थी और उस बाढ़ ने यहाँ पर भयंकर तबाही मचाई और अपने साथ सब कुछ बहा कर ले गई। इस कारण से यहाँ पर 10 किलोमीटर का कटाव हो गया था और मोहगोर खूंटी एक बंजर भूमि में बदल गया।”
उन्होंने कहा कि, “जब वे 16 साल के थे, तब उन्होंने महसूस किया कि पेड़ पौधे, सैकड़ों सांप सूखे के शिकार होकर मर रहे हैं। जंगल खत्म होने के कारण जानवर वहाँ से भाग रहे हैं। वह धरती बंजर होती जा रही है।”
जादव पायेंग ने उस छोटी सी उम्र में जब वे केवल 16 साल के ही थे कुछ करने का निर्णय लिया। उन्होंने सबसे पहले एक नाव बनाई। वह हर दिन, अपने पेड़ों से एक शाखा काटते थे, 20 मिनट तक चलते थे, फिर जो नाव बनाई थी उस में बैठ कर नदी पार करते थे और फिर उसके बाद दो घंटे और पैदल चलते थे, ताकि वह उस खाली जमीन पर जा सकें, जहाँ पर एक भी पेड़ नहीं था और पेड़ की उस शाखा को जमीन पर बो देते थे।
उन्होंने उस जगह पर एक एक कर के पेड़ लगाना प्रारंभ किया। सबसे पहले उन्होंने बांस का पेड़ लगाया था। शुरू-शुरू में लोगों को लगा कि वह पागल हो गये हैं। सब उनका मजाक बनाने लगे लेकिन उन्होंने उन लोगों की परवाह किये बिना अपना काम जारी रखा। धीरे-धीरे उन्होंने दूसरी प्रजाति के पेड़ लगाना प्रारंभ कर दिये। और यह सिलसिला 1 दिन, 2 दिन नही, 1 या 2 साल नही बल्कि पूरे चालीस साल तक इसी तरह से वे पेड़ से एक शाखा तोड़ते, पहले पैदल चलते फिर नाव में बैठ कर नदी पार करते और फिर से पैदल चल कर उस बंजर जमीन पर जाते और पेड़ लगाते थे।
धीरे-धीरे वे सारे पेड़ बड़े होने लगे और वह बंजर भूमि हरे भरे जंगल में बदल गई। उन्होंने जो पेड़ लगाए थे, उनके बीज से और भी पेड़ खुद व खुद लगने लगे। और कई वर्षों के बाद उस जंगल में जानवर दिखने लगे। हाथी, बाघ, गैंडा, हिरण और कई अन्य जंगली जानवरों को उस जंगल और वहाँ की हरियाली ने आकर्षित किया।
उन्होंने आगे बताया कि, “पेड़ पौधे होने के कारण वहाँ के वातावरण में भी बदलाव आने लगे और उनके लिए खेती करना और जीविकोपार्जन करना भी आसान हो गया।”
यह जानकर आश्चर्य होगा कि वह जंगल 550 हेक्टेयर में फैला हुआ है जो न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क से भी बड़ा है।
2010 में स्थानीय मीडिया को जादव पायेंग के बारे में मालूम चला और धीरे धीरे यह खबर पूरे देश के लिए एक सनसनी खबर बन गई। लोग उन्हें फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया के नाम से जानने लगे ।
भारत के राष्ट्रपति ने उनको बुला कर बधाई और पुरस्कार दिये। अब देश और विदेश में उनको वातावरण और जलवायु परिवर्तन पर बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता है। वे एक साधारण किसान से लाखों लोगों के लिए आदर्श बन गये है।
40 साल बाद भी वे नियमित रूप से पेड़ लगाते हैं, लेकिन अब उनका अगला लक्ष्य थोड़ा सा अलग है। अब वे पेड़ कैसे लगाए जाएँ उस पर एक किताब लिखना चाहते है। यह किताब वे अपने दोस्त के साथ मिलकर लिखना चाहते है क्योंकि उनका मानना है कि अगर हम बहुत कम उम्र से बच्चों को प्रकृति के महत्व के बारे में शिक्षित करते हैं और उन्हें कम उम्र से ही बीज बोना और पौधे लगाना और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार होना सिखाते है, तो हम पर्यावरण से संबंधित बहुत सारी समस्याओं का समाधान अभी कर सकते हैं और वे इस संदेश को अधिक से अधिक फैलाना चाहते हैं।
आज भी वे यह कहते है, “मैं कभी नहीं रुकूँगा।” और वे हम सब के साथ केवल एक संदेश साझा करना चाहते है ….
“यदि हम कुछ अच्छा करते हैं और उसके लिए हम बहुत लंबे समय तक प्रतिदिन थोड़े थोड़े कदम बढ़ाते हैं, तो आज नहीं तो कल हम कुछ बड़ा कर जायेंगे। कुछ ऐसा जो दुनिया को बेहतरी के लिए बदल देगा।”
“ध्येय प्राप्ति की ओर बढ़ाया गया प्रत्येक छोटा क़दम हमारी इच्छा शक्ति को और अधिक दृढ़ बनाता है।”