एक शिक्षक की अभिलाषा
शिक्षक शब्द सुनते ही आज भी हमारे हृदय में स्वत ही सम्मान का भाव जागृत हो जाता है। परन्तु आज का युवा, हमारे बच्चे आधुनिकरण की दौड़ में शिक्षको का सम्मान भूल गए हैं और नमस्कार की जगह उनका उपहास करते हैं और आज भी अपने शिक्षक को देखकर नतमस्तक हो जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि शिक्षको ने अपने स्वरूप को नहीं बदला है परिस्थितियों और परिवर्तनों के साथ चाक कलम के साथ ऑनलाइन शिक्षा को भी अपनाया है। आज के शिक्षक का कार्य सिर्फ पढाना ही नहीं है बल्कि एक मित्र ,एक पथप्रदर्शक के रूप में बच्चे का सवॅगिन विकास करना है और उसने किया है परन्तु आज का युवा शिक्षक के मूल स्वरूप को भूल गया है।
इतिहास गवाह है कि जब भी हमने किसी भी तरह की त्रासदी का सामना किया है एक शिक्षक ने शिक्षा की नींव को डगमगाने नहीं दिया है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण कोरोना काल है जिसमें डाक्टर, पुलिस प्रशासन एवं अन्य अनगिनत लोगों द्वारा योगदान दिया गया है वही शिक्षको ने भी सराहनीय कार्य किया है हालांकि उनके कार्य को गिना नहीं जाता है।
जहां एक ओर विदेशों में एक शिक्षक के सम्मान में सभी खडे हो जाते हैं वही हमारी भारतीय संस्कृति में जहां एकलव्य, उपमन्यु, उतंक जैसे गुरूभक्त हुए है ,जिन्होने गुरूआज्ञा को सर्वोपरि माना हैं ,ऐसे महानतम देश में आज गुरूओं का सम्मान गुम होता नजर आ रहा है।
आज शिक्षक बच्चों की भलाई के लिए भी उसे कुछ कह नहीं सकता है और यदि वो कुछ कह देता है तो बच्चा डिप्रेशन में चला जाता है परन्तु वास्तविकता में बच्चे को डिप्रेशन का मतलब भी नहीं पता होता है ये डिप्रेशन शब्द बताया किसने हैं वे हम ही तो है,यह सोचनीय हैं। हम बच्चों को किस ओर ले जा रहे हैं जिस पर हमें अभी काम करना हैं।
शिक्षकों के प्रति सम्मान एवं विश्वास को पुनः स्थापित करना हैं। एक शिक्षक केवल सम्मान चाहता है और अपने विधार्थियों को एक अच्छा मुकाम दिलाना चाहता है। वह चाहता है कि कि उसके द्वारा पढाए हुए बच्चे जब भी उससे मिले आदर के साथ मिले ।
एक शिक्षक की अभिलाषा एक शिक्षक की कलम से ………….
जयमाला नजान शिक्षिका